कौन थे। गौतम बुद्ध। कैसे ज्ञान प्राप्त हुआ गौतम बुद्ध को। गौतम बुद्ध के बारे में सारी जानकारी।

                        बौद्ध धर्म 

वैसे तो गौतम  बुद्ध को एशिया का ज्योति पुञ्ञ ( Light of Asia) कहा जाता है। पुरे एशिया मे सबसे ज्यादा मानने वाला देश भुटान नेपाल चिन भारत इन देशो मे सबसे ज्यादा लोग बौद्ध धर्म को मानते है। 




        बुद्ध के जीवन से संबंधित बौद्ध धर्म के प्रतीक 

घटना            प्रतीक                     घटना            प्रतीक

 जन्म            कमल एवं सांड           निर्वाण        पद-चिह्म

 गृहत्याग        घोडा़                         मृत्यु            स्तूप

ज्ञान               पीपल (बोधि वृक्ष )



आज के यह पोस्ट मे हम आपको  गौतम बुद्ध  के जिवन के सारी बाते बताए गे। जन्म से लेकर मृत्यु तक सारी बाते जाने गे।  

गौगत बुद्ध का जन्म 563 ईसा पूर्व में कपिलवस्तु के लुम्बिनी नामक स्थान पर  हुआ था । इनके पिता का नाम शुद्धोधन जोकि गण के मुखिखा थे। इनकी माता मायादेवी की मृत्यु इनके जन्म के सातवें दिन ही हो गई  थी। इनका लालन पालन सौतेली माँ प्रजापति गौतमी ने किया था । जो की इनकी मौउसी भी थी। इनके  बचपन का नाम सिद्धार्थ था। 

सिद्धार्थ जब कपिलवस्तु की सैर पर निकले तो उन्होने निम्न चार दृश्यों को क्रमशः देखा 1 बूढा व्यक्ति 2 एक बीमार व्यक्ति  3 शव (मृत्यु व्यक्ति ) 4 एक संन्यासी । 

इनके विवाह  छोटी सी उम्र (16 वर्ष) कर दी गई और इनकी पत्नी का नाम यशोधरा था। और इनका एक पुत्र था जिसका नाम राहुल था। 

सांसारिक समस्याओं से व्यथित होकर सिद्धार्थ ने 29 वर्ष की अवस्था में गृह-त्याग किया, जिसे बौद्धधर्म में महाभिनिष्क्रमण कहा गया है। 

गृह-त्याग करने के बाद सिद्धार्थ (बुद्ध) ने सर्वप्रथम वैशाली के आलारकलाम से सांख्य दर्शन की शिक्षा ग्रहण की । आलारकलाम सिद्धार्थ के प्रथम गुरु हुए । 

लेकिन उन्हे संतुष्टि नही मिली वहा से वह राजगीर के रुद्रकलाम पुत्र के पास गए। वहाँ भी उन्हे संतुष्टि नही मिली ।

राजगीर से  वे  उरुवेला (गया के निकट) में सिद्धार्थ को कौण्डिन्य, वप्पा, भादिया, महानामा, एवं अस्सागी नामक पाँच साधक मिले। वह इनके साथ कठोर तपस्या करने लगे। जिसके कारण उनके शरीर जर्जर  हो गया । 

वही के एक कन्या ने जिसका नाम सूजता नामक कन्या के सदेश सुनकर बुद्ध ने तपस्या करना छोड दिया। 

जिनके कारण उनके साथ  तपस्या करने वाले पाँच ब्राम्हण ने पथ भ्रष्ट कह कर सारनार्थ चले गए। गौतम बुद्ध ने उरुवेला से गया आए। और निंरजन नदी (फाल्गु) के किनारे पिपल के वृक्ष के निचे तपस्या करने लगे। अतः में 49 दिन वैशाख की पूर्णिमा की रात को 35 वर्ष कि अवस्था में ज्ञान कि प्राप्ति हुई। और इसके बाद सिद्धार्थ से बुद्ध के नाम से जाने गए। वह स्थान बोधगया कहलाया। 

बुद्ध ने अपना प्रथम उपदेश सारनाथ (ऋषिपतनम्) में दिया, जिसे बौद्ध ग्रंथों में धर्मक्रप्रवर्तन कहा गया है। 

          सुजता के द्वारा लिखा गया सदेश 

विणा के तार को इंतना न तानो की टूट्ट जाए और इतना  भि डिला मत छोडो कि वह न बजे। और सुजता के हाथ से बने खिर को खाए।  


बुद्ध ने अपने उपदेश  सर्वप्रथम पाली में दिएं। और बुद्ध ने अपने उपदेश कोशल,कौशाम्बी व अन्या राज्यो में 

इनके प्रमुख अनुयायी शासक थे।  बिम्बिसार  प्रसेनजित व उदयिन ।     बुद्ध की मृत्यु 80 वर्ष की अवस्था में 483 ईसा पूर्व में कुशीनारा (देवरिया, उतर प्रदेश ) में चुन्द द्वारा अर्पित भोजन करने के बाद  हो गयी, जिसे बौद्ध धर्म महापरिनिर्वाण कहा गया है। 

बौद्ध धर्म में पुनर्जन्म की मान्याता है। और तृष्णा को क्षीण हो जाने की अवस्था को बुद्ध ने निर्वाण कहा है।

विश्व दुखो से भरा है। का सिद्धान्त बुद्ध ने उपनिसद्  से लिया।

बुद्ध के अनुयायी दो भागों में विभाजित थे।

1 भिक्षुकः बौद्ध धर्म के प्रचार के लिए जिन्होंने संन्यास ग्रहण किया, उन्हे भिक्षुक कहा गया।

2 उपासकः गृहस्थ जीवन व्यतीत करते हुए बौद्ध धर्म अपनाने वालों को उपासकः कहा गया। 


                       बौद्ध संगीति सभाए

सभा         समय         स्थान।       अध्यक्ष     शासनकाल

प्रथम बौद्ध   483 ई़।    राजगृह        महाकश्यप   अजातशत्रु

संगीती         पूर्व


द्वितीय बौद्ध   383 ई।   वैशाली      सबाकामी     कालाशोक

  संगीती        पूर्व


तृतीय बौद्ध    255 ई।    पाटलिपुत्र   मोग्गलिपुत्र   अशोक

 संगीती           पूर्व                               तिस्स


चतुर्थ बौद्ध    ई़ की प्रथम     कुण्डलवन     वसुमित्र   कनिष्क

संगीति          शताब्दी                            अश्वघोष


बुद्ध पूर्णिमा के नाम से जाना जाता है। इसका महत्व इसलिए है। कि बुद्ध पूर्णिमा के ही दिन बुद्ध का जन्म, ज्ञान की प्राप्ति एवं महापरिनिर्वाण की प्राप्ति हुई। 

  


          भारत के महत्वपूर्ण बौद्ध  मठ 

मठ             स्थान                       राज्य/केन्द्रसित  प्रदेश

टाबो मठ       तबो गाँव (स्पीति घाटी )   हिमाचल प्रदेश

नामग्याल मठ     धर्मशाला                   हिमाचल प्रदेश

हेमिस मठ        लद्दाख                         जम्मू कश्मीर

थिकसे मठ        लद्दाख                          जम्मू कश्मीर

शासुर मठ           लाहुल स्पीति                हिमाचल प्रदेश

मिंडालिंग मठ       देहरादून                             उतराखंड

रूमटेक  मठ       गंगटोक                         सिक्कम

तवांग मठ           अरूणाचल प्रदेश           अरूणाचल प्रदेश

नामडांलिंग मठ     मैसुर                           कर्नाटक

बोधिमंडा मठ       बोधगया                       बिहार



नोट ः भारत में उपासना की जाने वाली प्रथम मूर्ति संभवतः बुद्ध की थी।

बौद्धसंघ में प्रविष्टि होने को उपसम्पदा कहा जाता है।

बौद्धधर्म के त्रिरत्न है। बुद्ध, धम्म, एवं सघं,।

इसे पंढे

भारत का इतिहास।


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