मौर्य काल में नमक पर लग गया था टैक्स, छह रसों में से एक इस लवण से जुड़ी हैं ऐसी ही कई दिलचस्प बातें।

 मौर्य काल में नमक पर लग गया था टैक्स, छह रसों में से एक इस लवण से जुड़ी हैं ऐसी ही कई दिलचस्प बातें

पुरे विश्व में नमक के उत्पादन में भारत तीसरे नंबर पर है.



नमक के बिना हम हमारा भोजन की कल्पना भी नहीं कर सकते हैं. छह रसों में से एक नमक पाचन, रक्त में गति पैदा करने वाला, आहार में रुचि पैदा करने वाला, पेट की अग्नि दीप्त करने वाला माना जाता है. इसके ज्यादा उपयोग से दांतों को नुकसान, बीपी जैसी समस्या हो सकती है.

नमक की उत्पत्ति कब हुई और कहां पर हुई, यह विचारणीय नहीं है. उसका कारण है कि समुद्र की उत्पत्ति से ही उसमें बेहिसाब नमक है. पृथ्वी पर नमक की झीलें हैं तो कुओं से नमक प्राप्त किया जाता रहा है. पहाड़ों से भी नमक मिल जाता है. भारत में वैदिक काल से नमक (लवण) का वर्णन है.

धार्मिक ग्रंथों में मिलता है ज़िक्र

धार्मिक ग्रंथों में नमक की भौतिक, आध्यात्मिक व धार्मिक उपयोगिता की भी जानकारी दी गई है. ‘गरुण पुराण’ में कहा गया है कि लवण का दान करने से यम का भय नहीं होता. ‘वराह पुराण’ में ‘लवण-धेनु’ की पूजा के लाभ बताए गए है कि नमक की गाय बनाकर स्वर्ण आदि धातु के साथ दान करने पर मनुष्य को इस लोक में तो परम सुख की प्राप्ति होती है, मृत्यु होने पर स्वर्ग मिलता है. ‘मतस्य पुराण’ में लवण के पूजा-अर्चना की जानकारी दी गई है. पुराणों में लवण नामक नरक की भी जानकारी दी गई है और कहा गया है कि वेद-शास्त्रों को नष्ट करने वाले प्राणी को इसी नमक में गलाया जाता है.

अधिकतर प्राचीन सभ्यताओं में नमक स्वाद के अलावा धर्म व संस्कृति के साथ भी जुड़ा हुआ है. इन सभ्यताओं में नमक को ईश्वर और मनुष्य के बीच गठबंधन के प्रतीक के रूप में भी वर्णित किया गया है. एक-दो उदाहरण इसके लिए काफी हैं. जैसे, रोम में शिशु के जन्म के आठवें दिन उसे बुरी आत्माओं से दूर रखने के लिए उसके शरीर पर नमक की मालिश की जाती थी. ग्रीक उपासक अपने अनुष्ठानों में नमक का अभिषेक करते थे तो यहूदियों की पूजा-अर्चना के प्रसाद में नमक भी होता था. बाइबिल में 46 बार नमक शब्द का उपयोग किया गया है. एक स्थान पर ईसा मसीह लोगों को ‘पृथ्वी का नमक’ (भ्रष्ट आचरण से दूर रहना) होने की सलाह देते हैं. कुरान शरीफ में नमक का दो बार जिक्र आया है, जहां उसके स्वाद की जानकारी दी गई है.

 देश की आजादी में ‘नमक’ का योगदान

नमक के बारे में थोड़ा और जान लें. रसायन शास्त्र व आयुर्वेद में जिन छह रस (स्वाद) की चर्चा हुई है, उसमें लवण भी प्रमुख है. मौर्य काल में नमक पर टैक्स लगाया गया था. कौटिल्य के ‘अर्थशास्त्र’ में इस

कर को वसूलने के लिए ‘लवणाध्यक्ष’ नामक पद की जानकारी दी गई है. अंग्रेजों के राज करने से पहले में नमक को लेकर कोई समस्या नहीं थी, लेकिन अंग्रेजों ने नमक का कारोबार अपने हाथ में ले लिया और नमक पर टैक्स लगा दिया. लोग नमक नहीं बना सकते थे. इसके खिलाफ महात्मा गांधी ने 1930 में नमक आंदोलन चलाया. लोगों को नमक बनाने की छूट मिल गई. इसके बाद ही गांधी जी ने सविनय अवज्ञा आंदोलन चलाया, जिसने भारत की आजादी में महत्वपूर्ण भूमिका अदा की.

गुजरात में सबसे अधिक उत्पादन

भारत में नमक तीन तरह से पाया जाता है, समुद्र से, खारी झीलों से और खारे पानी के कुओं से. एक अन्य सेंधा नमक पहाड़ों से मिलता है. नमक के उत्पादन में भारत तीसरे नंबर पर है. पहले नंबर पर चीन और दूसरे नंबर पर अमेरिका है. देश में नमक का जितना उत्पादन होता है, उसमें से करीब 75 प्रतिशत गुजरात से मिलता है. जब 1947 में भारत आजाद हुआ था, तब देश की जरूरत के लिए कुछ देशों से नमक इंपोर्ट किया जाता था. आज इस मसले पर भारत आत्मनिर्भर तो है ही, वह कोरिया, जापान, यूएसई, विएतनाम, कतर, इंडोनेशिया, मलेशिया को एक्सपोर्ट करता है.

चरकसंहिता’ में गुण-अवगुण की व्यापक जानकारी

ईसा पूर्व सातवीं-आठवीं सदी में लिखे आयुर्वेद ग्रंथ ‘चरकसंहिता’ में लवण की विस्तारपूर्वक जानकारी दी गई है और इसके रस (स्वाद) के गुण-अवगुण का सूक्ष्म वर्णन है. ग्रंथ के ‘आत्रेयभद्रकोप्यीय’ अध्याय में लवण रस को पाचन, रक्त में गति पैदा करने वाला, आहार में रुचि पैदा करने वाला, पेट की अग्नि दीप्त करने वाला, संपूर्ण रसों का शत्रु, कफ नाशक, शरीर के विष को बढ़ाने, दांतों के लिए नुकसानदायी, पित्तवर्धक और गंजापन का कारक बताया गया है.

 आप हैरान हो सकते हैं कि इस ग्रंथ के ‘आहारयोगिवर्ग’ में सात प्रकार के नमक की जानकारी दी गई है. जिनमें सैंधव, सौंचल, विडनमक, कालानमक, समुद्रलवण प्रमुख हैं. इनमें सैंधव (सैंधा) नमक को श्रेष्ठ कहा गया है. इन सभी नमकों को नेत्रों के लिए हितकर, गर्म, शरीर में गीलापन उत्पन्न करने वाला, अन्न को पचाने वाला और वायुनाशक कहा गया है.

अधिक नमक का सेवन मतलब बीपी हाई

मुंबई यूनिवर्सिटी के पूर्व डीन वैद्यराज दीनानाथ उपाध्याय के अनुसार नमक के बिना जीवन नीरस है. इसकी सबसे बड़ी विशेषता यह है कि यह भोजन में स्वाद पैदा करता है. लेकिन इसका अधिक सेवन

नुकसानदायक है. संभव हो तो भोजन, पेय, खाद्य पदार्थों में सैंधा नमक का प्रयोग करें. इसमें मिनरल्स पर्याप्त मात्रा में है, जिससे खांसी, त्वचा रोग, गठिया व डिप्रेशन जैसे जोखिमों से बचाव किया जा सकता है. पाचन तंत्र ठीक रहता है.


सामान्य सफेद नमक के मुकाबले सैंधा में आयरन (आयोडीन) काफी कम होता है. इसकी कमी घेंघा रोग का कारण बन सकती है. इसकी अधिक मात्रा अन्य नमक की तरह ही ब्लड प्रेशर बढ़ा सकती है. वैद्यराज के अनुसार साधारण नमक में सोडियम की मात्रा काफी होती है. जिससे शरीर की रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ती है. लेकिन इसका ज्यादा सेवन हड्डियों को नुकसान पहुंचाता है ओर बीपी तो बढ़ाता ही है.

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