वह भारतीय पयलट, जिसने वर्ल्ड वार एक में फ़ाइटर जेट उड़ाकर पूरी दुनिया में अपना लोहा मनवाया था

 Delhi: प्रथम विश्‍व युद्ध 1914 से 1918 तक हुआ। इस युद्ध के समय भारत ब्रिटिश का गुलाम हुआ करता था। जिस कारण भारतीय सेना ब्रिटिश सेना के अंतर्गत आती थी। इस समय किसी भी भारतीय सेना वीर को अफसर रैंक का पद नहीं दिया जाता था।

इस समय अंग्रेज भारतीय को सेना में शामिल जरूर करते थे। परंतु उन्‍हें हमेशा ही नीचे स्‍थान दिया जाता था। हालांकि जब प्रथम विश्‍व युद्ध खतम हुआ, तब तक भारतीय सेना के लिए अंग्रेजों की सोच में परिवर्तन आ चुका था।

जब यह युद्ध खतम हुआ। उसके बाद में सन 1919 को कई ऐसे भारतीय सैनिक थे। जिन्‍हें बड़े पद जैसे किंग्‍स कमिशन आदि दिये गये। भारत के प्रथम चीफ ऑफ आर्मी फील्‍ड मार्शल एम करियप्‍पा उसी समय इस बड़े पद पर चयनित हुये थे। जिन्‍हें बतौर अफसर के पद पर सेना में शामिल किया गया था।

आपको बता दे प्रथम विश्‍व युद्ध के समय में कुल 12 लाख भारतीय सेनिकों को युद्ध में झोंका गया था। भारतीय सैनिकों ने ब्रिटिश की तरफ से फ्रांस, मिस्‍त्र, मसोपोटामिया, बेल्‍जियम, सिनाई, गालीपोली इत्‍यादि की लड़ाईयॉं लडी।

इन सिपाहियों में 1 लाख तीस लाख सैनिक सिख थे। इन्‍ही सिख सैनिको में एक सैनिक थे। सरदार हरदित सिंह जोकि ग्रुप केप्‍टन थे। इन्‍हें फ्लाइंग सिख (Flying Sikh) कहा करते थे। क्‍योंकि यह आरएफसी और आरएएफ के हेलीकॉप्‍टर को उड़ाते थे।

सरदार हरदित सिंह मलिक

आपको बता दे सरदार हरदित सिंह मलिक (Hardit Singh Malik) रावलपिंडी में जन्‍में थे। यह एक अमीर परिवार से संबंधित थे। उनकी एक बड़ी हवेली हुआ करती थी। नौकर, बग्‍घी यह सब उनके घर में थे। वह अपनी मॉं और पिता की दूसरी संतान थे।

हरदित जब 14 वर्ष के थे। तब उनके परिवार ने उन्‍हें इंग्‍लैंड आगे की पढ़ाई करने भेज दिया था। वह पहले अपने परिवार के सदस्‍य थे। जिन्‍होंने इंग्‍लैंड (England) की यून‍िवर्सिटी में एडमिशन लिया था। 1910 में हरदित सिंह ने ऑक्‍सफॉर्ड के बलोल कॉलेज से डिग्री हासिल की थी। हरदित खेल कूद में काफी अच्‍छा प्रदर्शन किया करते थे। वह क्रिकेट के अलावा गोल्‍फ भी खेला करते थे।


प्रथम विश्‍व युद्ध में भारतीय नहीं थे बड़े पद पर

जब 1914 में प्रथम विश्व युद्ध की शुरूआत हुई। उस समय हरदित सिंह भी सेना में शामिल हुये थे। उन्‍होंने स्‍नातक के बाद में सन 1915 मे रॉयल फ्लाइंग कॉर्प्‍स को जॉइन करने का ट्राई किया था।

इस समय ब्रिटिश हर भारतीय को एक क्रांतिकारी समझते थे। जोकि गर्म दिमागी मतवाले सत्‍ता को खतम करने की चाह रखने वाले है, यह ब्रिटिश की सोच हुआ करती थी। ब्रिटिश ने प्रथम विश्‍व युद्ध (World War 1) के दौरान किसी भी भारतीय को बड़े पद में नियुक्‍त नहीं किया था। किसी भी भारतीय को उन्‍होंने हवाईजहाज उड़ाने के लिए नहीं चुना था।

ट्यूटर के खत की वजह से मिला लेफ्टिनेट पद

हरदित सिंह ने ऑक्‍सफोर्ड के पूर्व टयूअर को इस बारे मे जानकारी दी कि यहॉं पर किसी भी उच्‍च पद पर भारतीयों को स्‍थान नहीं दिया जा रहा है। ऐसे में टयूअर ने आरएफसी कमांडर से रिक्‍वेस्‍ट की। उन्‍होंने खत लिखकर हरदित को आरएफसी के सोपविथ केमल्‍स में लेफ्टिनेट के पद पर जगह देने की बात कही। इस रिक्‍वेस्‍ट के बाद हरदित को सेकंड लेफ्टिनेट के स्‍क्‍वाड्रन नंबर 28 में शामिल कर लिया गया।

हरदित भारत के वह पहले फाइटर पायलट है। जिन्‍होने ब्रिटेन की और से लड़ाई की परंन्‍तु अपनी पगड़ी कों नहीं उतारा वह अपनी पगड़ी के ऊपर एक हेलमेट पहना करते थे। जिसके कारण उन्‍हें फ्लांइग सिख कहा जाने लगा। हरदित जी पहले पगधारी थे। जो कि पगड़ी पहनकर ब्रिटिश सेना में शामिल हुये थे।


हेलीकॉप्‍टर में दुश्‍मन सेना ने दागे थे 400 बुलेट्स

आपको बता दे हरदित ऐसे भारतीय सेनिक थे। जो कि फ्रांस तथा इटली दोनों के कॉम्‍बैट मिशन में भाग ले चुके थे। 1917 में हरदित ने आकाश में ही जर्मनी की सेना से युद्ध किया था। उस समय हरदित जी के हवाईजहाजों को जर्मनी ने घेर लिया था।

हरदित को दुश्‍मन सेना ने पैर पर 2 गोलियॉं मा-र दी थी। जिस वजह से उनका हैलीकॉप्‍टर (Helicopter) क्रेश हो गया था। इस समय दुश्‍मन सेना ने हेलीकॉप्‍टर पर लगभग 400 बुलेट दाग दी थी। हालांकि इस युद्ध में हरदित सिंह जिन्‍दा बच गये थे। परन्‍तु जैसे ही युद्ध खतम हुआ, उन्‍होंने सिविल सर्विसेज को जॉइन कर लिया। क्‍योंकि वह जान चुके थे कि भारतीय पायलट्स का ब्रिटिश सेना में अच्‍छा स्‍कोप कभी नही होगा।

हरदिप सिंह जी के अन्‍य महत्‍वपूर्ण पद एवं कार्य

प्रथम विश्‍म युद्ध के खतम होने के बाद ब्रिटानिया गवर्नमेंट ने इंडियन सिपाहियों को नई पहचान दी। तथा भारत को सोपविथ केमल नाम का प्‍लेन दिया। इस प्‍लेन को हरदित सिंह उड़ाकर मैनचेस्‍टर गये थे। 1944 में हरदित सिंह जी को पंजाब का मंत्री पद दिया गया।

वही भारत के आजाद होने के बाद में हरदित को कनाडा़ में हाई कमिश्‍नर बनाया गया। इसी समय उन्‍होंने भारतीय नागरिकों को कनाडा की नागरिकता दिलवाने में भूमिका निभाई थी। 1956 में वह फ्रांस में राजदूत के पद को सम्‍हालने के बाद रिटायर हो गये।

हरदित सिंह को जो 2 जर्मन गोलियॉं लग गई थी। वही उनकी मृत्‍यू का कारण बनी। सन 1985 में उनकी मृत्‍यू हो गई। हरदित सिंह जी एक बहादुर सेनिक थे। इसलिए उनकी याद में अभी हाल ही में ब्रिटिश सरकार ने घोषणा की थी कि वह हरदित सिंह मलिक की प्रतिमा स्‍थापित करेंगे। इस प्रमिमा के 2023 तक प्रतिस्‍थापित किए जाने की संभावना जताई जा रही है।

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